Sunday 20 November 2011

अब आप ही बताओ की मैं क्या लिखूं .....

अपनी कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ..
या अपने दिल का सारा प्यार लिखूँ..

अपना कुछ ज़ाज़बात लिखूँ या अपने सपनो की सौगात लिखूँ..
खिलता सुरज को मैं आज लिखूँ या आपका चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ..

वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सांस लिखूँ..
वो पल मे बीते कुछ साल लिखूँ या सादियो से लम्बी रात लिखूँ..

सागर सा गहरा हो जाऊं या अम्बर का विस्तार लिखूँ..
मै आपको अपने पास लिखूँ या आपके दूरी का ऐहसास लिखूँ..

वो पहली -पहली प्यास लिखूँ या आपका निश्छल प्यार लिखूँ..
छत पे चढ़ बारिश मेँ भीगूँ या मैं रोज की रातों की
आंखों की बरसात लिखूँ..
कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ..या दिल का सारा प्यार लिखूँ..
                             अब आप ही बताओ की मैं क्या लिखूं .....
रघुवर झा

Tuesday 15 November 2011

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है


ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है,

मन लगा है स्वयं से नज़रें चुराने,
रुक गया है प्लेटफोर्म पर पुराने,
तन का सिग्नल लाल करती जा रही है,

खेत नदिया ताल पोखर छूटते हैं,
पटरियों पर कितने पत्थर टूटते हैं,
काल की भी दाल गलती जा रही है,

इक भिखारी गीत गाने में लगा है,
एक मोटू लाल खाने में लगा है,
धूप है, बत्ती भी जलती जा रही है,

है थकन से चूर मंजिल पाएगी ही,
आएगी मंजिल, कभी तो आएगी ही,
मन में कोई आस पलती जा रही है,

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है.

जीवन की आपाधापी में

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
(डा.  हरिवंश  राय  बच्चन )

Saturday 12 November 2011

जिंदगी से अनमोल कुछ नहीं

लोगों को मौत के बारे में बातें करते सुना है, बड़ी शान से कहते है कि मौत जीवन का सत्य है। एक दिन तो वह जरूर आएगी। माना कि वह एक दिन आएगी जरूर। पर क्या जरूरी है कि हंसती-मुस्कराती जिंदगी में मौत की चर्चा करना। अगर मौत से इतना ही प्यार है तो फिर इतनी मारा-मारी क्यों? जब एक ना एक दिन सबको मौत ने अपने साथ ले ही जाना है, तो फिर क्यों ये महल, चौबारे, पैसे के पीछे अंधी दौड , यह सब मेरी समझ से बाहर की बात है। इतने विद्वान और योग्य व्यक्तियों की समझ में जरा सी बात नहीं आती है कि वह क्यों इंसान को परलोक सुधारने के उपदेश देते है, जबकि सबसे बडा सत्य है कि जिंदगी से अनमोल और कुछ नहीं है। आजकल यह भी देखा जाता है कि लोग जान-बूझ कर जीवन से खिलवाड कर रहे है। मौत को समय से पहले आने का निमंत्रण दे रहे है। कुछ सक्षम, प्रभावशाली व्यक्तियों का जीवन साधारण जनता से ज्यादा कीमती हो गया है, तभी तो वह अपने को सुरक्षा कर्मियों के घेरे में सुरक्षित समझ किसी के लिए कुछ भी कह देते है। उनके बयानों के फलस्वरूप जब धमाके होते है, तो मारे जाते है निर्दोष प्राणी। हमारा सिस्टम इतना चरमरा गया है कि जैसे खटारा गाडिया, जो कभी भी कही पर भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और फिर एक खबर आती है फलां दुर्घटना या बम धमाकों में इतने मरे। इस बात की जानकारी बड़ी शान से वातानुकूलित कक्ष में बैठकर मीडिया के सामने दी जाती है कि देखो हमारा सिस्टम कितना आधुनिक हो गया है कि दुर्घटना के चंद मिनटों बाद ही प्रेस कांफ्रेंस आयोजित हो रही है। यह सिस्टम की खामी ही तो है कि नौसिखिए चालकों को किस प्रकार से इतने बेकसूर लोगों की जान से खेलने की जिम्मेदारी दी गई। दूसरी ओर हमारे सिस्टम की सबसे बडी खूबी यह है कि हमने फलां शहर के फलां मौहल्ले में इस संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। इसके बारे में पूरी मालूमात की जा रही है, पता लगाया जा रहा है कि यह कहां-कहां मौत बांटने आया था। जबकि दूसरी ओर बडे-बडे बम धमाकों के मुखय आरोपियों को शाही अंदाज में जीवन व्यतीत करने की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है। मेरी समझ में यह भी नहीं आता है कि आखिर हमारे सिस्टम को चलाने वाले जीवन बचाने की कवायद में लगे है या फिर जीवन को खत्म करने के लिए मौत को बुलाने का प्रयास कर रहे है। एक ओर कृषि प्रधान देश में आम जनता रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रही है तो दूसरी ओर हमारे नेता अपने हित साधने के प्रयास में लगे है। हर नेता अपनी हैसियत के मुताबिक घोटाले करने में मस्त है, और आज का सच कहने में एक्सपर्ट मीडिया भी इनकी नीतियों को समझ में नाकाम साबित हो रही है या फिर मीडिया अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से दूर भाग रही है और आम आदमी समय से पहले मौत की ओर जा रहा है। अजीब सा डर मन में बैठा रहता है कि घर से निकल तो जरूर रहे है, पर क्या वापस घर लौट पाएंगे? हर तरफ दहशत का माहौल बना हुआ है। सामाजिक व्यवस्थाओं को सुचारू ढंग से चलाने वाले अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को कब ईमानदारी से निभाएगे? यह सवाल हमेशा मन को परेशान रखता है और इसी परेशानी में समय गुजरता जा रहा है? क्या कभी यह सब ठीक हो पाएगा या फिर ऐसे ही…….?

Friday 11 November 2011

वर्तमान में जीना सीखो

अगर हम जीवन में सुख की कामना फिर रखते हैं तो हमें इस रहस्य को समझना होगा की वर्तमान में जीना ही सुखी रहने का मूल मन्त्र है. हममे से ज्यादातर लोग या तो भूतकाल में या फिर भविष्यकाल में या दोनों में जीते हैं लेकिन वर्तमान में बिलकुल भी नहीं जीते यही उनके सुखी ना हो पाने का कारण है. इस सम्बन्ध में मैं आपको एक कहानी आज बताना चाहता हूँ जो एक पुस्तक द मोंक हू सोल्ड हिज फरारी में वर्णित है. (source  -jagran)

पीटर एक प्रसन्नचित छोटा लड़का था हर कोई उसे प्यार करता था, लेकिन उसकी एक कमजोरी भी थी…. पीटर कभी भी वर्तमान में नहीं रह सकता था…. उसने जीवन की प्रक्रिया का आनंद लेना नहीं सीखा था…. जब वह स्कूल में होता तो वह बाहर खेलने के स्वप्न देखता…. जब बाहर खेलता तो गर्मियों की छुट्टियों के स्वप्न देखता था.

पीटर निरंतर दिवास्वप्न में खोया रहता…. उसके पास उन विशेष क्षणों का आनंद लेने का समय नहीं था जो उसके जीवन में थे…. एक सुबह पीटर आपने घर के निकट एक जंगल में घूम रहा था…. थकान महसूस करने पर उसने घास युक्त एक स्थान पर आराम करने का निश्चय किया और अंततः उसे नींद आ गयी…. उसे गहरी नींद में सोये हुए कुछ ही मिनट हुए थे कि उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. पीटर…. पीटर…. ऊपर से तेज कर्कश आवाज आई…. जैसे ही उसने आँखे खोली वह एक आश्चर्यजनक स्त्री को अपने ऊपर खड़ा हुआ देख कर चकित हो गया…. वह सौ वर्ष से अधिक उम्र की रही होगी…. उसके बाल बर्फ जैसे सफ़ेद थे…. उसके झुर्रियों से भरे हाथ में एक जादुई छोटी गेंद थी जिसके बीचों बीच एक छेद था जिससे बाहर की ओर एक लम्बा सुनहरा धागा लटक रहा था.

पीटर…. उसने कहा…. यह तुम्हारे जीवन का धागा है…. यदि तुम इस धागे को थोडा सा खींचोगे तो एक घंटा कुछ ही सेकेंड में बीत जायेगा…. यदि तुम इस जरा जोर से खींचोगे तो पूरा दिन कुछ मिनटों में ही ख़त्म हो जायेगा…. और यदि तुम पूरी शक्ति के साथ इसे खींचोगे तो अनेक वर्ष कुछ दिनों में व्यतीत हो जायेंगें…. पीटर इस बात को जानकार बहुत उत्साहित हो गया…. मै इसे अपने पास रखना चाहूँगा यदि यह मुझे मिल जाये तो…. उसने कहा…. वह महिला शीघ्र नीचे पहुंची और उसने वह गेंद उस लड़के को देदी.

अगले दिन पीटर अपनी कक्षा में बैचैनी और बोरियत अनुभव कर रहा था…. तभी उसे अपने नए खिलोने की याद आ गयी…. जैसे ही उसने सुनहरे धागे को खिंचा उसने अपने आप को घर के बगीचे में खेलता हुआ पाया…. जादुई धागे की शक्ति पहचानकर पीटर जल्द ही स्कूल जाने वाले लड़के की भूमिका से उकता गया और अब उसकी किशोर बनने की इच्छा हुई…. उस पूर्ण जोश के साथ जो जीवन के उस दौर में होता है…. उसने गेंद बाहर निकाली और धागे को कस कर खींच दिया.

अचानक वह किशोर वय का लड़का बन गया जिसके साथ सुन्दर गर्ल फ्रेंड एलिस थी…. लेकिन पीटर अब भी संतुष्ट नहीं था…. उसने वर्तमान में सुख पाना और जीवन की हर अवस्था के साधारण आश्चर्यों को खोजना कभी नहीं सीखा था…. इसके बजाय वह प्रौढ़ बनने के स्वप्न देखने लगा…. उसने फिर से धागा खींच दिया.

अब उसने पाया की वह एक मध्यम आयु के प्रौढ़ व्यक्ति में परिवर्तित हो चुका है…. एलिस उसकी पत्नी है…. वह बहुत सारे बच्चों से घिरा है…. उसके बाल भूरे हो रहे हैं…. उसकी मां कमजोर और बूढी हो गयी है…. लेकिन वह उन क्षणों को भी ना जी सका…. उसने कभी भी वर्तमान में जीना नहीं सीखा…. इसलिए उसने फिर धागा खींच दिया और परिवर्तन की प्रतीक्षा करने लगा. अब पीटर ने पाया कि वह एक नब्बे वर्ष का बूढ़ा व्यक्ति है…. उसके बाल सफ़ेद हो चुके हैं…. उसकी पत्नी मर चुकी है…. उसके बच्चे बड़े हो चुके हैं और घर छोड़ के जा चुके हैं.अपने सम्पूर्ण जीवन में पहली बार पीटर को यह बात समझ में आई कि उसने कभी भी जीवन की प्रशंसनीय बातों को समय पर अंगीकार नहीं किया था…. वह बच्चों के साथ कभी भी मछली पकड़ने नहीं गया…. ना ही कभी एलिस के साथ चांदनी रातों में घूमने गया…. उसने कभी भी बागीचा नहीं लगाया…. ना ही कभी उत्कृष्ट पुस्तकों को पढ़ा…. उसकी पूरी जिन्दगी जल्दबाजी में थी…. उसने रुक कर मार्ग में अच्छाइयों को नहीं देखा.पीटर यह जान कर दुखी हो गया …. उसने जंगल में जाने का निश्चय किया…. जहाँ वह लड़कपन में जाया करता था…. अपने को तरोताजा और उत्साहपूर्ण करने के लिए…. वह एक बार फिर घास के मैदान में सो गया…. एक बार फिर उसने वोही आवाज सुनी…. पीटर…. पीटर…. उसकी आँख खुली तो वह देखता है वही स्त्री वहां खड़ी थी…. उसने पीटर से पूछा कि उसने उसके उपहार का आनंद कैसे लिया…. पीटर ने स्पष्ट उत्तर दिया…. पहले तो मुझे यह मनोरंजक लगा लेकिन अब मुझे इससे घृणा हो गयी है…. मेरा सम्पूर्ण जीवन बिना कोई सुख भोगे मेरी आँखों के सामने से निकल गया…. मैंने जीवन जीने का अवसर खो दिया है…. तुम बहुत कृतघ्न हो…. उस स्त्री ने कहा …. फिर भी मै तुम्हारी एक अंतिम इच्छा पूरी करुँगी.पीटर ने एक क्षण के लिए सोचा…. और कहा…. मै फिर से वापस स्कूल जाने वाला लड़का बनना चाहता हूँ…. वह फिर गहरी नींद में सो गया…. फिर उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. आँख खोलने पर देखा तो उसकी मां उसे पुकार रही थी…. वो उसके स्कूल के लिए देर होने के कारण पुकार रही थी…. पीटर समझ गया कि वह वापस अपने पुराने जीवन में आ गया है…. वह परिपूर्ण जीवन जीने लगा…. जिसमे बहुत से आनंद…. हर्ष और विजयोत्सव थे…. लेकिन यह तभी संभव हो पाया जब वह वर्तमान में जीने लगा.

पीटर को तो दुबारा जीने का मौका मिल गया यह कहानी में तो संभव है लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि वास्तविक जीवन में मौके बार बार नहीं मिलते…. जीवन जीने के मौके बार बार नहीं मिलते…. आज भी हमारे पास मौका है…. ध्यान रहे हम इसे खो ना दें.

अगर हम जीवन में सुख की कामना फिर रखते हैं तो हमें इस रहस्य को समझना होगा की वर्तमान में जीना ही सुखी रहने का मूल मन्त्र है. हममे से ज्यादातर लोग या तो भूतकाल में या फिर भविष्यकाल में या दोनों में जीते हैं लेकिन वर्तमान में बिलकुल भी नहीं जीते यही उनके सुखी ना हो पाने का कारण है.
इस सम्बन्ध में मैं आपको एक कहानी आज बताना चाहता हूँ जो एक पुस्तक द मोंक हू सोल्ड हिज फरारी में वर्णित है.

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पीटर एक प्रसन्नचित छोटा लड़का था हर कोई उसे प्यार करता था, लेकिन उसकी एक कमजोरी भी थी…. पीटर कभी भी वर्तमान में नहीं रह सकता था…. उसने जीवन की प्रक्रिया का आनंद लेना नहीं सीखा था…. जब वह स्कूल में होता तो वह बाहर खेलने के स्वप्न देखता…. जब बाहर खेलता तो गर्मियों की छुट्टियों के स्वप्न देखता था.


पीटर निरंतर दिवास्वप्न में खोया रहता…. उसके पास उन विशेष क्षणों का आनंद लेने का समय नहीं था जो उसके जीवन में थे…. एक सुबह पीटर आपने घर के निकट एक जंगल में घूम रहा था…. थकान महसूस करने पर उसने घास युक्त एक स्थान पर आराम करने का निश्चय किया और अंततः उसे नींद आ गयी…. उसे गहरी नींद में सोये हुए कुछ ही मिनट हुए थे कि उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. पीटर…. पीटर…. ऊपर से तेज कर्कश आवाज आई…. जैसे ही उसने आँखे खोली वह एक आश्चर्यजनक स्त्री को अपने ऊपर खड़ा हुआ देख कर चकित हो गया…. वह सौ वर्ष से अधिक उम्र की रही होगी…. उसके बाल बर्फ जैसे सफ़ेद थे…. उसके झुर्रियों से भरे हाथ में एक जादुई छोटी गेंद थी जिसके बीचों बीच एक छेद था जिससे बाहर की ओर एक लम्बा सुनहरा धागा लटक रहा था.

पीटर…. उसने कहा…. यह तुम्हारे जीवन का धागा है…. यदि तुम इस धागे को थोडा सा खींचोगे तो एक घंटा कुछ ही सेकेंड में बीत जायेगा…. यदि तुम इस जरा जोर से खींचोगे तो पूरा दिन कुछ मिनटों में ही ख़त्म हो जायेगा…. और यदि तुम पूरी शक्ति के साथ इसे खींचोगे तो अनेक वर्ष कुछ दिनों में व्यतीत हो जायेंगें…. पीटर इस बात को जानकार बहुत उत्साहित हो गया…. मै इसे अपने पास रखना चाहूँगा यदि यह मुझे मिल जाये तो…. उसने कहा…. वह महिला शीघ्र नीचे पहुंची और उसने वह गेंद उस लड़के को देदी.

अगले दिन पीटर अपनी कक्षा में बैचैनी और बोरियत अनुभव कर रहा था…. तभी उसे अपने नए खिलोने की याद आ गयी…. जैसे ही उसने सुनहरे धागे को खिंचा उसने अपने आप को घर के बगीचे में खेलता हुआ पाया…. जादुई धागे की शक्ति पहचानकर पीटर जल्द ही स्कूल जाने वाले लड़के की भूमिका से उकता गया और अब उसकी किशोर बनने की इच्छा हुई…. उस पूर्ण जोश के साथ जो जीवन के उस दौर में होता है…. उसने गेंद बाहर निकाली और धागे को कस कर खींच दिया.

अचानक वह किशोर वय का लड़का बन गया जिसके साथ सुन्दर गर्ल फ्रेंड एलिस थी…. लेकिन पीटर अब भी संतुष्ट नहीं था…. उसने वर्तमान में सुख पाना और जीवन की हर अवस्था के साधारण आश्चर्यों को खोजना कभी नहीं सीखा था…. इसके बजाय वह प्रौढ़ बनने के स्वप्न देखने लगा…. उसने फिर से धागा खींच दिया.

अब उसने पाया की वह एक मध्यम आयु के प्रौढ़ व्यक्ति में परिवर्तित हो चुका है…. एलिस उसकी पत्नी है…. वह बहुत सारे बच्चों से घिरा है…. उसके बाल भूरे हो रहे हैं…. उसकी मां कमजोर और बूढी हो गयी है…. लेकिन वह उन क्षणों को भी ना जी सका…. उसने कभी भी वर्तमान में जीना नहीं सीखा…. इसलिए उसने फिर धागा खींच दिया और परिवर्तन की प्रतीक्षा करने लगा.

अब पीटर ने पाया कि वह एक नब्बे वर्ष का बूढ़ा व्यक्ति है…. उसके बाल सफ़ेद हो चुके हैं…. उसकी पत्नी मर चुकी है…. उसके बच्चे बड़े हो चुके हैं और घर छोड़ के जा चुके हैं.

अपने सम्पूर्ण जीवन में पहली बार पीटर को यह बात समझ में आई कि उसने कभी भी जीवन की प्रशंसनीय बातों को समय पर अंगीकार नहीं किया था…. वह बच्चों के साथ कभी भी मछली पकड़ने नहीं गया…. ना ही कभी एलिस के साथ चांदनी रातों में घूमने गया…. उसने कभी भी बागीचा नहीं लगाया…. ना ही कभी उत्कृष्ट पुस्तकों को पढ़ा…. उसकी पूरी जिन्दगी जल्दबाजी में थी…. उसने रुक कर मार्ग में अच्छाइयों को नहीं देखा.

पीटर यह जान कर दुखी हो गया …. उसने जंगल में जाने का निश्चय किया…. जहाँ वह लड़कपन में जाया करता था…. अपने को तरोताजा और उत्साहपूर्ण करने के लिए…. वह एक बार फिर घास के मैदान में सो गया…. एक बार फिर उसने वोही आवाज सुनी…. पीटर…. पीटर…. उसकी आँख खुली तो वह देखता है वही स्त्री वहां खड़ी थी…. उसने पीटर से पूछा कि उसने उसके उपहार का आनंद कैसे लिया…. पीटर ने स्पष्ट उत्तर दिया…. पहले तो मुझे यह मनोरंजक लगा लेकिन अब मुझे इससे घृणा हो गयी है…. मेरा सम्पूर्ण जीवन बिना कोई सुख भोगे मेरी आँखों के सामने से निकल गया…. मैंने जीवन जीने का अवसर खो दिया है…. तुम बहुत कृतघ्न हो…. उस स्त्री ने कहा …. फिर भी मै तुम्हारी एक अंतिम इच्छा पूरी करुँगी.

पीटर ने एक क्षण के लिए सोचा…. और कहा…. मै फिर से वापस स्कूल जाने वाला लड़का बनना चाहता हूँ…. वह फिर गहरी नींद में सो गया…. फिर उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. आँख खोलने पर देखा तो उसकी मां उसे पुकार रही थी…. वो उसके स्कूल के लिए देर होने के कारण पुकार रही थी…. पीटर समझ गया कि वह वापस अपने पुराने जीवन में आ गया है…. वह परिपूर्ण जीवन जीने लगा…. जिसमे बहुत से आनंद…. हर्ष और विजयोत्सव थे…. लेकिन यह तभी संभव हो पाया जब वह वर्तमान में जीने लगा.

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पीटर को तो दुबारा जीने का मौका मिल गया यह कहानी में तो संभव है लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि वास्तविक जीवन में मौके बार बार नहीं मिलते…. जीवन जीने के मौके बार बार नहीं मिलते…. आज भी हमारे पास मौका है…. ध्यान रहे हम इसे खो ना दें.

हिम्मत नहीं हरनी चाहिए

हिम्मत नहीं हरनी चाहिए , चाहे कुछ भी हो जाये, डा. श्री हरिवंश राय बच्चन जी की एक कबिता जो मैं आप लोगो के साथ बतना चाहूँगा :-

हिम्मत करने वालो की हार नहीं होती
लहरों से डर कर नैया पार नहीं होती.

नन्ही चींटी जब दाना ले कर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
डुबकियाँ सिन्धु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौट आता है
मिलते न सहज ही मोटी पानी में
बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन त्यागो तुम
संघर्ष करो मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती.


जो लोग जीतने की इच्छा को मन में बैठाकर लगातार कोशिश करते हैं उन्हें एक न एक दिन जीत जरूर मिलती है वास्तव में लगातार कोशिश करना ही सफलता की कुंजी है। और जो असफलता से हार कर निराश हो जाते हैं उनसे सफलता कोसों दूर रहती है।

कर्म पुराण की एक कथा के अनुसार मध्य भारत के किसी प्रांत के एक राजा ने इस बार पूरी तैयारी से शत्रु सेना पर हमला किया। घमासान युद्ध हुआ। राजा और उसके सैनिक बहुत ही वीरता से लड़े, किंतु सातवीं बार भी हार गए। राजा को अपने प्राणों के लाले पड़ गए। वह अपनी जान बचाकर भागा। भागते-भागते घने जंगल में पहुंच गया और एक स्थान पर बैठकर सोचने लगा कि सात बार हार चुकने के बाद अब तो शत्रु से अपना राज्य फिर से प्राप्त करने की कोई आशा ही नहीं रह गई है। अब मैं इसी जंगल में रहकर एकांत जीवन बिताऊंगा। जीवन में अब क्या शेष रह गया है।इन्हीं निराशाजनक विचारों में खोया राजा थकान के मारे सो गया।

जब काफी देर बाद उसकी नींद खुली, तो सामने देखा कि उसकी तलवार पर एक मकड़ी जालाबना रही है। वह ध्यान से यह दृश्य देखने लगा। मकड़ी बार-बार गिरती और फिर से जाला बनाती हुई तलवार पर चढऩे लगती है। इस तरह वह दस बार गिरी और दसों बार पुन: जाल बनाने में जुट गई। तभी वहां एक संत आए और राजा की निराशा जानकर बोले देखों राजन। मकड़ी जैसा छोटा सा जीव भी बार-बार हारकर निराश नहीं होता। युद्ध हारने को हार नहीं कहते बल्कि हिम्मत हारने को हार कहते हैं। तुम फिर से प्रयास करों। अपने सैनिकों को इकठ्ठा कर, उनमें नया जोश भरकर युद्ध करो, देखना, इस बार जीत तुम्हारी होगी। राजा ने वैसा ही किया और इस बार वह जीत गया।

कथा का सार यह है कि असफलता पर निराश होकर बैठ जाने की जगह पर लगातार कोशिश करनी चाहिए। इससे एक दिन अवश्य ही सफलता मिलती है। इसलिए कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

जिस दिन इन्सान अपना हिम्मर हार जाये उसी दिन उस इन्सान की मौत हो जाती है, अगर बच जाता है तो सिर्फ एक शरीर का ढांचा जो जिन्दा होते हुए भी मृत के सामान है...हौशले मर्दा तो मरदे खुदा.......

खुद से वादा किया है...

ना पूछो की मंज़िल कहा है,अभी तो बस सफ़र का इरादा किया है. ना हारेंगे हौसला उम्र भर,किसी और से नही ..खुद से वादा किया है...

आज कल मैं बहोत ही बुरे दिन और ख्यालातो से गुजर रहा हूँ I पता नहीं क्या करू क्या नहीं करू, जिस काम के बारे में सोचता हु वही काम बिगरता हुआ दीखता है, शुरू शुरू में लगा की बस कुछ दिनों की बात है ये सब गुजर जायेगा...लेकिन जब ये सब गुजरने के वजाय मेरे लो कांफिडेंस के कारन बन्ने लगे तो मैं और भी जायदा डिप्रेस हो गया, लोगो के बताये उन तमाम उपायों को अपनाने की कोशिस करने लगा जिसमे मुझे विश्वाश तक नहीं था, अगर ये कहू तो बिलकुल गलत नहीं होगा की अपने आदत से परे हट कर उन से माफ़ी माँगा, गलतिय मानी जो मैंने कभी किया ही नहीं. मुझसे बहोत आश्चर्य हो रहा था अपने इन बदलाव पे, मुझसे मेरे ही हाथो अपने बर्वादी की कहानी लिखी जाने लगी. इन्ही बीच मुझे प्यार सा होने लगा, जिसमे खो कर मैं उन तमाम चीजों अर्थात अपने काम अपने मकशद से दूर जाने लगा जिसके लिए मैं दिल्ली आया था, मुझमे वो सब बीमारियाँ आने लगी जो मुझमे कभी था ही नहीं, मैं ये नहीं कहता की प्यार करना गलत है, लेकिन ये बात उतना ही गलत की प्यार को अपने काम अपने मकशद से ऊपर लाया. और यहाँ से मेरी बर्वादी का सफ़र शुरू हो गया था. अब मैं भी सपनो में खोया रहता था, अशर काम पे हुआ, मेरे कस्टमर्स तुंटने लगे, उन्हें मेरे साथ काम करके वो संतुष्टि नहीं मिलती जो मेरे से पहले मिलती थी, मैं दिनों दिन अपने ग्राफ निचे लेन लगा..लेकिन उससे भी जायदा दुःख मुझे तब हुआ जब मेरे प्यार मुझे छोर के  चली गयी,  रह गया मैं अपने इस दुनिया में अकेला, अपने लो कांफिडेंस के साथ की मैं कुछ कर नहीं सकता, शायद वो भी ठीक ही समझती रही की मैं कुछ नहीं कर पाउँगा...इसीलिए मैं उसके जाने के बाद शराब और सिगिरेट पे डूबता चला गया, हर तरह ही कोशिसे करने लगा उसे अपने पास वापस बुलाने की, लेकिन वो मुझसे इगनोरे करती रही, यहाँ तक जो लड़की मुझे कहती थी की आपसे एक पल दूर रहना एक जिंदगी  के बराबर है, अगर कभी भी मैं आपसे एक दिन के लिए दूर हुई तो शायद वो मेरा आखरी दिन होगा...वही लड़की मेरा फ़ोन काल्स, मेल्स, मस्सेजेस का अन्स्वेर करना भी बंद कर दी, खैर  किश्मत को कुछ और ही मंजूर था, शायद किश्मत मुझे फिर से कांफिडेंट करना चाहती थी, और मैंने उसके सपने देखना बंद कर दिया...आज अचानक मैं अपने पिछले दिनों में झांक के देखा तो पाया की इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है...अगर आप बुलंद हो, आपके पास पैसे है, तो हर कोई आपके साथ है...अगर ये दो चीज़े आपपे नहीं तो कोई भी आपका साथ देना नहीं चाहता, चाहे वो बीबी हो, गर्लफ्रेंड हो या आपके रिश्तेदार....

मेरा भी सपना टूटा, मैं भी जाग गया हु, अब अपने उसी दुनिया में वापस आने को तैयार हो चूका हूँ, उसी जोश और जज्बे के साथ... "ना पूछो की मंज़िल कहा है,अभी तो बस सफ़र का इरादा किया है. ना हारेंगे हौसला उम्र भर,किसी और से नही ..खुद से वादा किया है"...और जब कोई इन्सान खुद से खुद के लिए वादा करता है तो उसे कभी नहीं तोड़ता क्यूंकि उसे वादा टूटने के बाद के दर्द का एहशाश होता है.... मैं भी उठूँगा, फिर से अपने उस मुकाम पे पह्चुन्गा जहाँ मैं था, वो सब हासिल करूँगा जिसपे मेरा हक है, था और होगा...अपने तमन चाहने वालो का वो हर तमाम सपना पूरा करूँगा...क्योंकि मैं नींद से जाग चूका हु, हकीकत से वाकिफ हो चूका हु, और इन सभी चीजों ने मेरे अन्दर के सोये इन्सान को जगा दिया... दोस्तों न्नेंद में रहना, सपने देखना बुरी बात नहीं, कई बार आपके सपने ही आपको उस मुकाम तक पहुंचती है जहाँ आप पहुचना चाहते हो, लेकिन उसके लिए आपको स्टेप बाई स्टेप काम करना होगा....क्रमशः

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया

जिन्दगी के सफ़र में

मालिक हैं हम ऎसी बेहाल ज़िन्दगी के

कागज के पन्नों में जल रहे थे कुछ साल ज़िन्दगी के ,
धुआँ ही  धुआँ से हो गये कई ख्याल ज़िन्दगी के ।
इन सभी में एक तेरी याद है बस जो दिल बेहलाती है ,
वरना शताते हैं हमे कई  सारे सवाल ज़िन्दगी के ।
वफ़ा थी मोहब्बत में ,दोस्ती में थी बेवफ़ाई ,
होते है कई तजूर्बें बेमिसाल ज़िन्दगी के ।
हंसते चेहरे जलते पावं , नदिया चिडियाँ गावं ,
हर पल नजर आते हैं कमाल ज़िन्दगी के ।
शाम से सुबह ,सुबह से रात का सफ़र ,
मालिक हैं हम ऎसी बेहाल ज़िन्दगी के ।

Thursday 10 November 2011

ज़िन्दगी

हमारी ज़िन्दगी भी कितनी "अपूर्वानुमेय " होती है... है ना ? कब  किसके साथ क्या होने वाला है कुछ नहीं पता... अगर सच कहें तो हमें लगता है ज़िन्दगी का ये "अपूर्वानुमेय" होना इसे और भी खूबसूरत बना देता है... ज़िन्दगी के प्रति एक आकर्षण, एक रोमांच बना रहता है...हमें थोड़ा अलग ढंग से जीने के लिए प्रेरित करती है, अगर हमें अपने आने वाले कल के बारे में पता हो तो उसकी चिंता में शायद हम अपने आज को भी ठीक से ना जी पायें... वैसे भी आज ज़िन्दगी के लिये तमाम सुख सुविधाएं जुटाने की भागमभाग में हम अपनी ज़िन्दगी को जीना ही भूल गए हैं, जो हर गुज़रते पल के साथ कम होती जा रही है, हमसे दूर होती जा रही है... पैसों से खरीदे हुए ये बनावटी साज-ओ-सामान हमें सिर्फ़ चंद पलों का आराम दे सकते हैं पर दिल का सुकून नहीं... इसलिए भाग-दौड़ भरी इस ज़िन्दगी से आइये अपने लिये कुछ लम्हें चुरा लें... कुछ सुकून के पल जी लें... उनके साथ जो हमारे अपने हैं... आज हम यहाँ है कल पता नहीं कहाँ हों... आज जो लोग हमारे साथ हैं कल शायद वो साथ हों ना हों और हों भी तो शायद इतनी घनिष्टता हो ना हो... क्या पता... इसीलिए आइये ज़िन्दगी का हर कतरा जी भर के जी लें... ये ज़िन्दगी हमें बहुत कुछ देती है, रिश्ते-नाते, प्यार-दोस्ती, कुछ हँसी, कुछ आँसू, कुछ सुख और कुछ दुःख... कुल मिलाकर सही मायनों में हर किसी की ज़िन्दगी की यही जमा पूंजी है... ये सुख दुःख का ताना-बाना मिलकर ही हमारी ज़िन्दगी की चादर बुनते हैं, किसी एक के बिना दूसरे की एहमियत का शायद अंदाजा भी ना लग पाए... अभी हाल ही में हुए कुछ  हादसो ने हमें सोचने पे मजबूर कर दिया... सोचा कि इस हादसे ने ना जाने कितने लोगों कि ज़िन्दगी अस्त-व्यस्त कर दी, कितने लोगों को इस हादसे ने उनके अपनों से हमेशा हमेशा के लिये जुदा कर दिया और ना जाने कितने लोगों को ये हादसा कभी ना भर सकने वाले ज़ख्म दे गया... पर इस हादसे को बीते अभी चंद दिन ही हुए हैं... आग अभी पूरी तरह बुझी भी नहीं है और ये हादसा अखबारों और न्यूज़ चैनल्स कि सुर्खियों से गुज़रता हुआ अब सिर्फ़ एक छोटी ख़बर बन कर रह गया है... शायद यही ज़िन्दगी है... कभी ना रुकने वाली... वक़्त का हाथ थामे निरंतर आगे बढ़ती रहती है... जो ज़ख्म मिले वो समय के साथ भर जाते हैं और जो खुशियाँ मिलीं वो मीठी यादें बन कर हमेशा ज़हन में ज़िंदा रहती हैं...

लेखक नहीं हूँ तो शब्दों और लोगो के दिलो से खेलना आज भी नहीं आता...आज भी मैं एक देहाती ही हूँ..इतने तेज शहर में रहने भी मैं गाँव की हूँ...कुछ विचार मन में आये थे सो लिख दिये...

कभी ग़म की चिलकन, तो कभी सुख का मरहम
तो उदासी के साहिल पे हँसी की इक लहर
कभी कुछ उम्मीदें
तो कभी बहोत सारी नकामियां
कभी कुछ हादसे
तो कुछ हौसले
कभी ख़ुदा बनता इंसान
कभी खुद से हैरान परेशान
कभी बच्चों की हँसी में खिलखिलाती मासूमियत
कभी दादी-नानी के चेहरों की झुर्रियां
इन सब में है थोड़ी थोड़ी
इक टुकड़ा ज़िन्दगी

“ज़िन्दगी लम्बी नहीं, गहरी होनी चाहिए”

“ज़िन्दगी लम्बी नहीं, गहरी होनी चाहिए” – रौल्फ वाल्डो इमर्सन
क्योंकि ज़िन्दगी जीने में और जीवित रहने में बहुत बड़ा अंतर है

* जब तक जियें तब तक सीखते रहें - हमेशा नया कुछ सीखने और पढने में हम जितना समय और ऊर्जा लगाते हैं वह हमारे जीवन को रूपांतरित करता रहता है. हम सभी हमारे ज्ञान का ही प्रतिबिम्ब हैं. जितना अधिक हम ज़िन्दगी से सीखते हैं उतना अधिक हम इसपर नियंत्रण रख पाते हैं.
* अपने शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा करें - हमारा शरीर हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण यन्त्र या औजार है. हम जो कुछ भी सही-गलत करते हैं उसका हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है. हमें अपने शरीर को पोषण, व्यायाम, और आराम देना चाहिए और स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए.
* प्रियजनों के साथ अधिकाधिक समय व्यतीत करना - हम सभी भावुक प्राणी हैं. हमें सदैव अपने परिजनों और मित्रों के सहारे की ज़रुरत होती है. जितना अधिक हम उनका ध्यान रखते हैं उतना ही अधिक वे हमारी परवाह करते हैं.
* अपने विश्वासों के प्रति समर्पण रखें - कुछ लोग अपने सामजिक परिवेश में सक्रीय होते हैं, कुछ लोग धार्मिक आस्था से सम्बद्ध हो जाते हैं, कोई व्यक्ति लोगों का जीवन सुधरने की दिशा में प्रयास करता है, अधिकांश लोग अपने काम और नौकरी के प्रति समर्पण भाव रखते हैं. प्रत्येक स्थिति में उन्हें एक समान मनोवैज्ञानिक परिणाम मिलता है. वे स्वयं को ऐसी गतिविधि में लिप्त रखते हैं जिससे उन्हें मानसिक शांति और संतुष्टि मिलती है. इससे उनके जीवन को मनोवांछित अर्थ मिलता है.
* जो भी करें सर्वश्रेष्ठ करें - यदि आप कोई काम बेहतर तरीके से नहीं कर सकते तो उसे करने में कोई तुक नहीं है. अपने काम और अपनी अन्य गतिविधियों जैसे रूचियों आदि में सबसे बेहतर साबित होकर निखरें. लोगों में अपनी धाक जमायें कि आप जो कुछ भी करते हैं वह सदैव सर्वश्रेष्ठ ही होता है.
* अपने पैर चादर के भीतर ही रखें - अच्छी ज़िन्दगी जियें लेकिन किसी तरह का अपव्यय न करें. दूसरों को दिखाने के लिए पैसा न उडाएं. याद रखें कि वास्तविक संपत्ति दुनियावी चीज़ों में निहित नहीं होती. अपने धन का नियोजन करें, धन को अपना नियोजन न करने दें. अपने से कम आर्थिक हैसियत रखनेवाले को देखकर जियें.
* संतोषी जीवन जियें - स्वतंत्रता सबसे बड़ा वरदान है. संतोष सबसे बड़ी स्वतंत्रता है.
* अपना प्रेमाश्रय बनायें - घर वहीँ है, ह्रदय है जहाँ. आपका घर कैसा भी हो, उसे प्यार के पलस्तर से बांधे रखें. याद रखें, घर और परिवार एक दुसरे के पूरक हैं.
* स्वयं और दूसरों के प्रति ईमानदार रहें - ईमानदारी भरा जीवन मानसिक शांति की गारंटी है और मानसिक शांति अनमोल होती है.
* दूसरों का आदर करें - बड़ों का आदर करें, छोटों का भी सम्मान करें. ऐसी कोई श्रेणी नहीं होती जो किसी मानव को दूसरे मानव से पृथक कर सकती हो. सभी को एक समान इज्ज़त बख्शें. जितना धैर्य आप अपने नवजात शिशु के प्रति दिखाते हैं उतने ही धैर्य से अपने वृद्ध पिता से भी व्यवहार करें.
* नया करते रहें - अपने प्रियजनों के साथ आप भांति-भांति प्रकार के अनुभव साझा करें. आपकी जीवन गाथा विस्तृत अनुभवों की लड़ी ही तो है! जितने अच्छे अनुभव आप उठाएंगे, आपका जीवन उतना ही अधिक रोचक बनेगा.
* अपने कर्मों की जिम्मेदारी से न बचें - आप कुछ भी करें, भले ही वह सही हो या गलत, उसकी जिम्मेदारी उठाने से न कतराएँ. यदि आप स्वयं जिम्मेदारी ले लेंगे तो आपको जिम्मेदार नहीं ठहराया जायेगा.
* अपने वायदों को हद से भी ज्यादा पूरा करें - बहुत सारे लोग दूसरों से बिना सोचविचार किये ही वायदे कर बैठते हैं और उन्हें निभा नहीं पाते. वे वादा करते हैं काम पूरा करने का लेकिन काम शुरू भी नहीं करते. यदि आप लोगों की दृष्टि में ऊंचा उठना चाहते हैं तो इसका ठीक उल्टा करें. अपनी योग्यताओं कों यदि आप कम प्रदर्शित करेंगे तो आप सदैव लोगों की दृष्टि में वांछित से अधिक उपयोगी साबित होंगे. लोगों में आपकी कर्तव्यनिष्ठ और कार्यकुशल व्यक्ति की छवि बनेगी.
* सुनें ज्यादा, बोलें कम - ज्यादा सुनने और कम बोलने से आप ज्यादा सीखते हैं और आपका ध्यान विषय से कम भटकता है.
* अपना ध्यान कम विषयों पर केन्द्रित करें - कराटे के बारे में सोचें, ब्लैक बैल्ट कम सुन्दर दिखती है बनिस्पत ब्राउन बैल्ट के. लेकिन क्या एक ब्राउन बैल्ट किसी रेड बैल्ट से अधिक सुन्दर दिखती है? बहुत से लोग ऐसा नहीं सोचेंगे. हमारा समाज प्रबुद्ध और महत्वपूर्ण लोगों कों बहुत ऊंची पदवी पर बिठाता है. परिश्रम बहुत मायने रखता है लेकिन इसे केन्द्रित होना चाहिए. अपना ध्यान अनेक विषयों में लगाकर आप किसी एक में पारंगत नहीं हो पायेंगे. एक को साधने का विचार ही सर्वोत्तम है.
* उपलब्ध साधनों का भरपूर दोहन करें - साधारण व्यक्ति जब किसी बहुत प्रसन्नचित्त अपाहिज व्यक्ति कों देखते हैं तो उन्हें इसपर आर्श्चय होता है. ऐसी शारीरिक असमर्थता की दशा में भी कोई इतना खुश कैसे रह सकता है!? इसका उत्तर इसमें निहित है कि वे ऐसे व्यक्ति अपने पास उपलब्ध सीमित शक्ति और क्षमता का परिपूर्ण दोहन करने में सक्षम हो जाते हैं. अश्वेत गायक स्टीवी वंडर देख नहीं पाते लेकिन अपनी सुनने और गाने की प्रतिभा को विकसित करने के परिणामस्वरूप उन्होंने 25 ग्रैमी पुरस्कार जीत लिए हैं.
* छोटी-छोटी खुशियों से ज़िन्दगी बनती है - मैं यह हमेशा ही कहता हूँ कि जीवन में जो कुछ भी सबसे अच्छा है वह हमें मुफ्त में ही मिल जाता है. वह सब हमारे सामने नन्हे-नन्हे पलों में मामूली खुशियों के रूप में जाने-अनजाने आता रहता है. प्रकृति स्वयं उन क्षणों कों हमारी गोदी में डालती रहती है. अपने प्रियजन के साथ हाथों में हाथ डालकर बैठना और सरोवर में डूब रहे सूर्य के अप्रतिम सौन्दर्य कों देखने में मिलनेवाले आनंद का मुकाबला और कोई बात कर सकती है क्या? ऐसे ही अनेक क्षण देखते-देखते रोज़ आँखों से ओझल हो जाते हैं और हम व्यर्थ की बातों में खुशियों की तलाश करते रहते हैं.
* लक्ष्य पर निगाह लगायें रखें - लक्ष्य की दिशा में न चलने से और भटकाव में पड़ जाने से कब किसका भला हुआ है! आप आज जहाँ हैं और कल आपको जहाँ पहुंचना है इसपर सतत मनन करते रहने से लक्ष्य स्पष्ट हो जाता है और नई दिशाएं सूझने लगती हैं. इससे आपमें स्वयं कों सम्भालकर पुनः शक्ति जुटाकर नए हौसले के साथ चल देने की प्रेरणा मिलती है.
* अवसरों कों न चूकें - कभी-कभी अवसर अत्प्रश्याशित समय पर हमारा द्वार खटखटाता है. ऐसे में उसे पहचानकर स्वयं कों उसके लिए परिवर्तित कर लेना ही श्रेयस्कर होता है. सभी बदलाव बुरे या भले के लिए ही नहीं होते.
* इसी क्षण में जीना सीखें - जो पल इस समय आपके हाथों में है वही पल आपके पास है. इसी पल में ज़िन्दगी है. इस पल कों जी लें. यह दोबारा लौटकर नहीं आएगा.

जिन्दगी के सफ़र में

अपने हालातो को देख कर, दिल में एक ख्याल आया
की क्यों मेरी जिंदगी मुझसे ही बेवफा हो गयी,
पीछे के दिनों में जब झांक के देखा तो
पाया जिंदगी लापता सी हो गयी

समय के चक्र से पहलु सामने आ गया,
उसी में जीना मरना सामने पाया
कांटे, जंगल, फूल, काया और माया
ये सब तो समय की ही फेर है भाया

ना उलझो समाज के दिखावेपन में
अपनी जिन्दगी को जियो सिर्फ अपनेपन में
लोग तो ऐसे ही होते है जो भूल हते है
जो याद रकते है वही सिर्फ प्यार करते हैं

ऐसे लोग दुनिया को बेकार लगते है
हकीक़त में वही दिल के सच्चे होते हैं
यूँ तो जिन्दगी कठिन है जीना
पर वो जिन्दगी ही क्या
जो हमें ना शिखा पाए जीना.....

रघुवर झा