Tuesday 15 November 2011

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है


ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है,

मन लगा है स्वयं से नज़रें चुराने,
रुक गया है प्लेटफोर्म पर पुराने,
तन का सिग्नल लाल करती जा रही है,

खेत नदिया ताल पोखर छूटते हैं,
पटरियों पर कितने पत्थर टूटते हैं,
काल की भी दाल गलती जा रही है,

इक भिखारी गीत गाने में लगा है,
एक मोटू लाल खाने में लगा है,
धूप है, बत्ती भी जलती जा रही है,

है थकन से चूर मंजिल पाएगी ही,
आएगी मंजिल, कभी तो आएगी ही,
मन में कोई आस पलती जा रही है,

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है.

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