Friday, 11 November 2011

मालिक हैं हम ऎसी बेहाल ज़िन्दगी के

कागज के पन्नों में जल रहे थे कुछ साल ज़िन्दगी के ,
धुआँ ही  धुआँ से हो गये कई ख्याल ज़िन्दगी के ।
इन सभी में एक तेरी याद है बस जो दिल बेहलाती है ,
वरना शताते हैं हमे कई  सारे सवाल ज़िन्दगी के ।
वफ़ा थी मोहब्बत में ,दोस्ती में थी बेवफ़ाई ,
होते है कई तजूर्बें बेमिसाल ज़िन्दगी के ।
हंसते चेहरे जलते पावं , नदिया चिडियाँ गावं ,
हर पल नजर आते हैं कमाल ज़िन्दगी के ।
शाम से सुबह ,सुबह से रात का सफ़र ,
मालिक हैं हम ऎसी बेहाल ज़िन्दगी के ।

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