Thursday, 10 November 2011

जिन्दगी के सफ़र में

अपने हालातो को देख कर, दिल में एक ख्याल आया
की क्यों मेरी जिंदगी मुझसे ही बेवफा हो गयी,
पीछे के दिनों में जब झांक के देखा तो
पाया जिंदगी लापता सी हो गयी

समय के चक्र से पहलु सामने आ गया,
उसी में जीना मरना सामने पाया
कांटे, जंगल, फूल, काया और माया
ये सब तो समय की ही फेर है भाया

ना उलझो समाज के दिखावेपन में
अपनी जिन्दगी को जियो सिर्फ अपनेपन में
लोग तो ऐसे ही होते है जो भूल हते है
जो याद रकते है वही सिर्फ प्यार करते हैं

ऐसे लोग दुनिया को बेकार लगते है
हकीक़त में वही दिल के सच्चे होते हैं
यूँ तो जिन्दगी कठिन है जीना
पर वो जिन्दगी ही क्या
जो हमें ना शिखा पाए जीना.....

रघुवर झा

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